Wednesday, August 17, 2011

'Radhe Guru Maa' ki Leelaye - Part 4




Part - 4






श्री राधे माँ भवन के ग्राउंड फ्लोअर स्थित बड़े से हॉल में माता की चौकी के उस कार्यक्रम में श्रधालुओ की उस भीड़ में मुझे अलग अलग स्थानों से आये श्रधालुओ के चेहरे नज़र आ रहे थे | मैंने चारो तरफ निगाह दौड़ाने के बाद साथ बैठे सज्जन से धीमे स्वर में पुछा, "देवी माँ किधर बैठे है?"

'वो तोह पाचवे मेल पर विराजमान है|" उसने गौर से मेरी तरफ देखा, " आपको दर्शनों के लिए नंबर पर्ची मिली?"

"नहीं" मैंने इंकार में सिर हिलाया "मुझे कोई पर्ची -वरची मिली नहीं है|"

"कोई बात नहीं|" उसने आश्वस्त भाव से मेरे हाथ को थपथपाया "में ला देता हूँ|"

"में भी आपके साथ चलता हूँ|" मैंने उसे उठाते देखकर कहा, "कहासे मिलती है पर्ची?"

उसने इशारे से आने का संकेत दिया|

में उसके पीछे-पीछे हाल में प्रवेश करने वाले गेट तक पहुंचा | वह एक सेवादार के कम में कुछ कहने के बाद बहार गया और तुरंत लौट आया |

"ये लो........" उसने एक पर्ची मेरे हाथ में थमाई,"आपका नंबर है 825 |"

"इसका क्या मतलब हुआ?" मैंने पहले पर्ची और फिर उसकी तरफ देखा |

"अभी समझाता हूँ|" वह हॉल में एक साइड में खड़े कुछ लोगो की तरफ देखने लगा | तभी एक सेवादार ने एक सूचना देने वाला पोस्टर पब्लिक की और दिखाया | उसपर लिखा था '551 to 600'

"देखो!" वह श्रद्धालु बोला,  अभी यह लोग जिनको  '551 to 600' नंबर तक की पर्ची मिली है, वह श्रद्धालु सीढियों के रास्ते चढ़ते हुए पाचवे माला तक जायेंगे | वही पर देवी माँ के दर्शन होंगे |"

हॉल में बैठे कुछ श्रद्धालु पुरुष, महिलाये, बच्चे, नौजवान सीढियों की तरफ बड़े अनुशासनात्मक भाव से बढे |

"देखो, अभी ' 600  श्रधालुओं को दर्शन का बुलावा आया है |" मेरे साथ खड़े सज्जन बोले " वोह क्या है ! जैसे पहले ५० दर्शनार्थी दर्शन करके निचे उतरेंगे, आगे की पर्ची वाले पचास लोगोंको ऊपर भेजा जायेगा | अभी कुछ समय बाद फिर पचास श्रधालुओं को दर्शन के लिए भेजा जायेगा | आपका नंबर क्या है ?"

"825" मैंने पर्ची में देख कर कहा |

"समझो आधा पौन घंटा और लगेगा |"  वह मुस्कुराया,  "तब तक आप भजनों का आनंद लो |"

"आपका नाम क्या है भगतजी?" मैंने उसकी तरफ देखते हुए धीरे से पुछा|

"अनिल", वह हौले से मुस्कुराया, " में फगवाडा का रहने वाला हूँ "

"फगवाडा?" मैंने जिज्ञासु भाव से पुछा, "यह कहा है?"

"फगवाडा पंजाब में है |", अनिल ने बताया, "लुधियाना का नाम सुना है?"

"हाँ" मैंने सहमती में सिर हिलाया |

"बस लुधिअना के पास ही है|" अनिल ने सिर हिलाया, "में यहाँ देवी माँ की सेवा की लिए आया हूँ| मुझे बड़ी प्रतीक्षा करनी पड़ी, बहुत हजारी लगनी पड़ी | तब जाकर सेवा का आदेश हुआ |"

"क्या सेवा करते हो?" मैंने सहज भाव से पुछा |

"जो मिल जाये ......" वह आत्मविभोर स्वर में बोला, "यह भवन में जो भी सेवा मिलती, में उसे अपना सौभाग्य मनाता हूँ |"

"जैसे?" मैंने प्रश्न किया|

"जैसे... " वह तनिक सोच कर बोला, "जैसे कुछ भी | अभी जब सभी श्रद्धालु दर्शने करने के बाद चले जायेंगे तोह पांचवे माला तक सीढियों की सफाई, ऊपर हॉल में सफाई करना, यहाँ हाल के दरी गद्दे उठाना, हॉल में एक-दम साफ़ सफाई करना वैगेरह वैगेरह .......!"

"तुम तो बहोत ही किस्मत वाले हो अनिल " मैंने मुग्ध निगाहों से उसे देखा, " मुझे भी ऐसी कोई सेवा मिल जाएगी क्या?"

"अभी से?" अनिल ने हैरानी के साथ कहा, पता है?" में पिछले ३ साल से यहाँ लगातार हर दुसरे तीसरे शनिवार
को आ रहा हूँ | लगातार आरजी लगाने के बाद 'देवी माँ ' ने मुझ पर यह मेहेरबानी की है | मेरा फगवाडा मैंने बहोत बड़ा कपड़ो का शो-रूम है | में पिछले १६ दिनों से यही 'देवी माँ 'की सेवा में हूँ |

"वापिस कब आयोगे? " मैंने कौतुहल से पुछा |

अनिल श्रद्धाभाव  से बोला , " जब 'देवी माँ'  का हुकुम होगा !"

(निरंतर ...)

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