Wednesday, August 17, 2011

'Radhe Guru Maa' ki Leelaye - Part 12



Part 12


  "बहुत अच्छे !" मेरे कानो में एक महिला स्वर गूंजा |

मैंने हडबडा कर सर घुमाया |


तालिया बजाने का उपक्रम कर रही एक दर्शनार्थी महिला मेरे पीछे कड़ी शिव चाचा के विचार सुन कर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रही थी |


मेरे एकाएक घुमने से वह भी मथोडा हडबडा कर पीछे सरकी ! दर्शानोके के लिए ऊपर जा रही थी संगतों की कतार में खड़ी एक अन्य महिला से वह टकराते बची |


उस महिला की उम्र लगभग 50  के करीब होगी हलके ग्रीन कलर का पंजाबी सूट पहने उस महिला के हाथ में एक थैली थी जिसमें से एक लाल चुनरी का थोडा सा हिस्सा बहार उभरा दिखाई दे रहा था | थैली में शायद कुछ और भी उपहार थे जो 'देवी माँ' को भेटे करने थे |


लाइन में पहले से खड़ी महिला ने थोडा सरक कर उस महिला को स्थान दिया,  जो शिव चाचा की बात कर रहे थी |


"बहुत उचित और जरुरु व्यवस्था हुई है |" थैली वाली महिला ने दो तीन बार दाए बाए सर हिलाया , "इसकी जरुरत भी थी |"


दूसरी महिला जो लगभग चालीस वर्ष की थी, तनिक दुबली पतली मगर अच्छे परिवार की सदस्य लग रही थी, उसने सहज भाव से पुछा, " आप कहा से आई है, बेहेन ?"


"घाटकोपर से ...."थैली वाली महिला बोली, "मेरे नाम अर्पिता मूलचंदानी है..| मैं हर दर्शनों के दिन आती हूँ |"

" मैं बांद्रा से आई हूँ !" दुबली पतली महिला ने अपना हाथ आगे बढाया, " मेरा नाम नीलिमा है | नीलिमा शर्मा|"
"नीलिमा ....." अर्पिता ने गर्मजोशी से हाथ मिलाया, "आपको शिव चाचा द्वारा बताई व्यवस्था कैसी लगी ..."
"ठीक है ..." नीलिमा सपाट स्वर में बोली, " ये लोग यहाँ व्यवस्थापक है | जैसा करेंगे हम दर्शानार्थोने को वैसे ही करना पड़ेगा ना |"

"वो बात नहीं है..." अर्पिता ने सर झटका, " देखो! यह कार्ड के कलर द्वारा प्रत्येक शनिवार को दर्शन लाभ प्राप्त करने की व्यवस्था का मैं तो पुरजोर समर्थन करती हूँ | पूछो क्यों ? देखो मैं घाटकोपर से शाम ५-६ बजे के करीब चलकर यहाँ लगभग आठ - सादे आठ बजे पोहोचती हूँ  | कई बार नौ भी बज जाते है | लाइन में लगने के बाद मुझे लगभग 800 या या इससे उपार का नंबर मिलता है | आप मानेगी ? पिचली दफा मैंने रात को डेढ़ बजे दर्शन किये | फिर भंडारा लिया | घाटकोपर में वापिस घर पोहोचते पोहोचते मुझे सुबह के चार बज गए | इस व्यवस्था से में दर्शन जल्दी पा जाउंगी | लाइन में अधिक देर खड़े रहना नहीं पड़ेगा | ज्यादा गर्दी नहीं होने के कारन 'देवी माँ' के दर्शन भी आची तरह से होंगे | भाई मेरे को तो यह व्यवस्था एक दम ठीक लगी ... क्यूँ भैया?"

महिला ने मेरे तरफ आशाविंत निगाहों से देखा |

"मेरे ख्याल से... " मैंने अनुमोदन भरे स्वर में कहा, " इस व्यवस्था का सभी का समर्थन करना चाहिए |"

उसके चेहरे पर संतुष्ठी के भाव प्रगट हुए | अर्पिता ने होंठो ही होंठो में मुझे thank You और सीढियों के ऊपर की तरफ झाँका |

"अर्पिता जी ..." नीलिमा ने तनिक चिंतित स्वर में कहा, " मेरी कुछ घरेलु परेशानिया है, जिससे में 'देवी माँ' को अपने मुह से बताना चाहती हूँ | मगर मुश्किल ये है, गुफा में प्रवेश करने के बाद एक तो वह सांगत काफी बड़ी तादाद में होती है, ऊपर से सेवादार भी ज्यादा रुकने से मनाई करते है | "


"आप एक काम करे", अर्पिता ने भवे सिन्कोड़ी, "छोटी माँ से अपनी बात क्यूँ नहीं कहती?"


"छोटी माँ?" मैंने विचारपूर्वक निगाहों से उन दोनों की तरफ देखा | छोटी माँ कोन है? मैंने मन ही मन में प्रश्न किया |

"छोटी माँ कोन है?" यही सवाल प्रत्यक्ष रूप से नीलिमा ने तनिक व्यग्र स्वर में पुछा |


"छोटी माँ ............." अर्पिता ने हाथ हिलाते हुए कहा, "परम श्रधेय श्री देवी माँ का ही प्रतिरूप है "


"वो जो गुलाबी ड्रेस और गुलाबी चुनरी में देवी माँ की बाजु में खड़े रहती है ?" नीलिमा ने तनिक विचारपूर्वक स्वर में पुछा |


"Correct ! एकदम बरोबर पहचाना !" अर्पिता ने सहमति में सर हिलाया, "छोटी माँ को कही गयी बात समझो देवी को ही कही गयी है | देखो, बहेन | 'देवी माँ' मात्र दृष्टी मात्र से अपनी सांगत का कल्याण करती है | मगर फिर भी, आपकी कोई गंभी समस्या है .. आप किसी उलझन में है, किसी चिंता में घिरे है ... या मन का कोई बोझ आपकी ज़िन्दगी में तकलीफे घोल रहा है, तो पहले यूँ करे 'गौरव कुमार से समय ले..."


"यह 'गौरव कुमार' कं है?" नीलिमा ने पुछा |


अर्पिता ने एक हाथ ऊपर उठाकर मंदिर में घंटी बजने जैसा उपक्रम करते हुए तनिक मुस्कुराकर कहा, "टल्ली बाबा जी|"

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